सोने का जंगल।
बहुत दिन हो गये पुरानी बात है।
रामगढ़ नाम का एक गांव था। इस गांव में एक घर में रामलाल और उसका परिवार रहता था। रामलाल की पहली बीवी स्वर्गवासी होने के कारण उसने दूसरी शादी कर ली। उसकी दूसरी बीवी का नाम ललिता देवी था। उसके एक लड़का और लड़की थी। लड़की का नाम सरला था। सरला रामलाल की स्वर्गवासी पत्नी की पुत्री थी। इसलिए उसकी दूसरी बीवी उससे नफरत करती थी। उन्हें एक लड़का भी था। जिसका नाम नरेश था। और ललिता देवी का वह लाडला बेटा था। वह कुछ काम नहीं करता था। बस दिन काटता रहता था और सोता रहता था। ललिता देवी सरला को हमेशा कोई ना कोई काम बोलती रहती थी। कभी पानी भरने को कहती तो कभी खाना पकाने को और कभी कपड़े धोने को कहती लेकिन सरला हमेशा सौतेली मां का काम बड़े ही प्यार से करती
1 दिन की बात है खाना पकाने के लिए सूखी लकड़ियां न होने के कारण ललिता देवी ने सरला को जंगल जाने को कहा बेचारी सरला अकेली जंगल की ओर चल पड़ी। जाते समय सरला को रास्ते में एक हीरण दिखाई पड़ा वह हिरण शिकारी के जाल में फस गया था। और जाल से निकलने के लिए बोल रहा था। सरला तुरंत उसके पास गई और उसने जाल खोलकर हिरण को आजाद किया। हिरण ने कहा शुक्रिया भगवान तुम्हारा भला करेंगे। और ऐसा कहते हैं हिरण दौड़ते दौड़ते वहां से चला गया फिर से कुछ ही देर जाने के बाद उसे सुखा पेड़ दिखाई दिया पेड़ ने उससे कहा मेरी मदद करो पानी नहीं मिलने के कारण मैं सुख गया। क्या तुम मुझ में पानी डाल सकती हो उस पर सरला बोली क्यों नहीं थोड़ा रुको। मैं अभी आती हूं ऐसा कहते ही वह कुएं के पास गई और बाल्टी में पानी भरकर लाई और उसे सूखे पेड़ में डाल दिया। सूखा पेड़ तुरंत हरा भरा हो गया पेड़ बोला शुक्रिया बेटा भगवान तुम्हारा भला करें।
ऐसा सुनते ही सरला आगे चली कुछ देर चलने के बाद उसे एक झोपड़ी दिखी उस झोपड़ी में एक बूढ़े बाबा रहते थे। सरला उसके पास गई और पूछा बाबा आप इस जंगल में अकेले क्यों रहते हो। इस पर बाबा बोले क्या करूं बेटा मेरे तीनों बेटे मुझे संभाल नहीं सकते। सब अपनी अपनी बीवियों में मस्त हैं। मेरी उन्हें जरूरत नहीं है। इसलिए मैं यहां आ गया हूं। सरला बोली मैं आपकी सेवा करूंगी फिर सरला वही रहने लगी। सरला उस बूढ़े बाबा की सेवा करने में लगी रही। कभी खाना बना कर देती कभी दवाई की थी। सरला ने उस बूढ़े बाबा की बहुत सेवा की फिर एक दिन सरला को उसके परिवार की याद आ गई। तब उसने बाबा से कहा मैं अब वापस जाना चाहती हूं।
बाबा बाले ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी और फिर वह दोनों एक कुएं के पास गए और बाबा ने कुएं से पानी निकाला और एक बर्तन में डाला तो वह सोना बन गया सरला ने सोना लिया ,बाबा को अलविदा कह कर और अपने घर की ओर चल चल पड़ी। घर जाते ही सौतेले भाई ने देखा और कहा मां देखो सरला दीदी वापस आ गई है और साथ में बहुत सारा सोना की लाई है। ऐसा सुनकर ललिता दौड़ती हुई सरला की तरफ आई यह तो असली सोना है कहां से लाई हो। सरला बोली मुझे जंगल में एक बाबा मिले मैं उन्होंने दिया है। इस पर ललिता देवी बोली मैं भी जाती हूं। उस बाबा के पास मुझे रास्ता बोलो कैसे जाना है। हाथों से इशारा करते हुए सरला ने रास्ता दिखाया। नरेश झट से मां को बोला मां देर ना कर तू भी जल्दी चल देर ना कर सोना लेकर आओ। ललिता देवी जल्दी से जंगल की ओर चल पड़ी आगे जाते ही रास्ते में हिरण दिखा। वह हिरण शिकार की जाल में फंसा था। और जाल से निकलने के लिए पुकार रहा था।
हिरण ने उसे पास बुलाया माता जी कृपा थोड़ी सहायता करो मुझे आजाद करो। ललिता देवी बोली हट साले मैं क्या तुम्हारी मदद करने के लिए जंगल में आई हूं। मुझे सोना चाहिए ऐसा कहते ही वह आगे चली गई। कुछ देर बाद उसे एक सूखा पेड़ दिखाई दिया। सूखे पेड़ ने ललिता देवी को कहा बहना अगर तुम मुझ में थोड़ा सा पानी डाल दो।
इस पर ललिता डेरी बोली अब तुम्हें पानी डाल कर क्या फायदा वैसे भी तुम अब सूख गए हो कुछ काम के नहीं मुझे सोना लेने जाना है देर हो रही है। वह ललिता देवी वहां से आगे चली गई है। कुछ देर चलने के बाद उसे एक झोपड़ी दिखाई दी वह झोपड़ी के पास गई और कहा बाबा मुझे सोना चाहिए कहां मिलेगा। बाबा बोले पर तुम्हें मेरी सेवा करनी पड़ेगी। ललिता ने कहा मैं तेरी सेवा क्यों करूं तुम मेरे कौन लगते हो। मुझे बस सोना चाहिए और फिर वह है कुए के पास जाती है।
और सुना निकालने के लिए कुएं में बाल्टी डालती है। पर बाल्टी सोने के बदले पत्थर लेकर आती है। ललिता देवी परेशान हो जाती है। फिर बाबा उसके पास आते हैं और कहते हैं। जिसका मन पत्थर जैसा हो उसे सिर्फ पत्थर ही मिलते हैं। तुम्हारी बेटी का मन श्रवण जैसा था तब उसे सोना मिला।
2 Comments
very nice story
ReplyDeleteBhut hi achi kahani hai
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