मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना।
ये शायर राहत इंदौरी जी का है। कोरोना ने हमसे एक जिन्दा दिल और बहादुर शायर छिन्न लिया।
उर्दू के प्रोफेसर रहें उर्दू में PHD किया और जिस महिफ़िल में गए राहत इन्दोरी ने बादशाहत के झंडे गाडे।
हाथ खाली है तेरे शहर से जाते जाते , जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते। अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता हैं ,उम्र गुजरी हैं तेरे शहर आते जाते।
इन्दोर के राहत इन्दोरी अब हमारे बीच नही रहें। उन्होंने अपनी शायरी से इस शहर को एक पहचान दी
और उनकी शोहरत के हर एक मुकाम में इंदोर कभी अलग न हो सका। आज वे अपने लाखों सरोताओ को पाठकों को अलविदा कह गए।
एक शायर की जिन्दगी का हिसाब आप टीवी के कार्यकर्म में नही लगा सकते मगर मिजाज से वे जिदी थे।
ऐसा लगता था की दुनिया में अपनी शायरी से बिडे रहते।
मजा चखा के ही माना हूं मै भी दुनिया को समझ रही थी की ऐसे ही छोड़ दुगा दुनिया को
ये उनके शेयर है सारे। राहत साहब का एक मसूर शयेर है जो हर महफ़िल की साँस है।
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है,बस्तिया छोड़ कर जाने को कहा जाता है। जान थोड़ी है अगर ख़िलाफ़ है होने दो यह सब धुँआ है,कोई आसमान थोड़ी है। लगेगी आग तो आयेगे घर कई जद में यहाँ पर सिर्फ हमारा माकन थोड़ी है। हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है हमारे मुह में तुमारी जुबान थोड़ी है। मैं जानता हूं की दुश्मन भी कम नही लेकिन हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी हैं। जो आज साहिबे मसनद है कल नही होंगे किरायेदार है जाती मकान थोड़ी है। सभी का खून है शामिल यह की मिटटी में किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है।
1. Jab mai Mar Jau .mp4
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